मौर्य साम्राज्य और उसका पतन, आतिम शासक कौन है 2021

maurya samrajya ki prashasnik vyavastha

maurya samrajya ki prashasnik vyavastha दोस्तों आप का स्वागत है हमारे Achiverce Information में  तो आज का हम आपको बताने जा रहे मौर्य साम्राज्य के वंशजों एवं अशोक सम्राट के कलिंग युद्ध इस युद्ध से उनके जीवन में आये धर्म परिवर्तन, अशोक के स्तम्भ शिलालेख मौर्य वंश के आखिरी शासक आदि के दी है। 

मौर्य  वंश की स्थापना का श्रेय चंंन्द्रगुप्त मौर्य को जाता है मौर्य साम्राज्य का शासन काल 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक रहा है।

   मौर्य साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य का आरंभिक दौर और उसका पतन
मौर्य साम्राज्य का परिचय

 maurya samrajya ki prashasnik vyavastha

मौर्य वंश के संस्थापक चंन्द्रगुप्त मौर्य को माना जाता है चंन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में हुआ था। जस्टिन ने चंन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा है, जिसकी पहचान विलियम जोन्स ने चंन्द्रगुप्त मौर्य से की है। चंन्द्रगुप्त मौर्य के पिता का नाम सर्वार्थसिद्धी मौर्य था और इनकी माता का नाम मूरा मौर्य था। 

विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में चंन्द्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल (आशय -निम्न कुल में उत्पन्न) मौर्य क्षत्रिय राजवंश एक सम्पन्न कृषक जाति है, जिसका इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के मतानुसार भगवान राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश और भगवान बुद्ध ने इसी वंश में जन्म लिया है।

चंन्द्रगुप्त मौर्य मगध की राजगद्दी पर कब बैठे?

चंन्द्रगुप्त मौर्य मगध की राजगद्दी पर 322 ईसा पूर्व में बैठा। घनानंद को हराने में में चाणक्य (कोटिल्य/विष्णुगुप्त) ने चंन्द्रगुप्त मौर्य की मदद की थी जो बाद में चंन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री बने। इसके द्वारा लिखित पुस्तक अर्थशास्त्र है, जिसका सम्बन्ध राजनीति से है। 

चंन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को हराया जो सिकन्दर का सेनापति था सिकन्दर के की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में हुआ जिसके बाद सेल्यूकस ने सिकन्दर का शासन कार्य अपने हाथ में ले लिया। 

चंन्द्रगुप्त मौर्य से हारने के बाद सेल्यूकस ने अपनी पुत्री कार्नेलिया (हेलेना) की शादी चंन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी और युद्ध की संधि-शर्तो के अनुसार चार प्रांत काबुल, कन्धार, हेरात एवं मकरान चंन्द्रगुप्त को दिए। 

चंन्द्रगुप्त मौर्य की दो पत्नी थी इनकी पहली पत्नी दुर्धरा जो धनानंद की पुत्री थी दुसरी पत्नी कार्नेलिया थी। दुर्धरा और चंन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिन्दुसार था जो आगे मगध की राजगद्दी पर बैठा। 

चंन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है। प्लूटार्क के अनुसार चंन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए थे। चंन्द्रगुप्त मौर्य ने जैनी गुरू भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली थी

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मेगास्थनीज कौन था?

मेगास्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चंन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहता था। मेगास्थनीज द्वारा लिखी पुस्तक इंडिका है। मेगास्थनीज के अनुसार सम्राट का जनता के समाने आने के अवसरों पर शोभा यात्रा के रुप में जश्न मनाया जाता है।उन्हें एक सोने के पालकी में ले जाया जाता है। 

उनके अंगरक्षक सोने और चाॅंदी से अलंकृत हाथियों पर सवार रहते हैं। कुछ अंगरक्षक पेड़ों को लेकर चलते हैं इन पेड़ों पर प्रशिक्षित तोतों का झुण्ड रहता है जो सम्राट के सिर के चारों तरफ चक्कर लगाता रहता है। राजा सामान्यतः हथियारबंद महिलाओं से होते हैं। उनके खाना खाने के पहले खास नौकर उस खाने को चखते हैं। वे लगातार दो रात एक ही कमरे में नहीं सोते थे

पाटलिपुत्र के बारे में: पाटलिपुत्र एक विशाल प्राचीर से घिरा है, जिसमें 570 बुर्ज और 64 द्वार है। दो और तीन मंजिल वाले घर लकड़ी और कच्ची ईट्टों से बने हैं।राजा का महल भी काठ का बना है जिसे पत्थर की नकाशी से अलंकृत किया गया है। यह चारों तरफ से उघानों और चिड़ियों के लिए बने बसेरों से घिरा है। 

मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया है- (1) दार्शनिक (2) किसान, (3) अहीर, (4) करीगर,(5) सैनिक, (6) निरीक्षक एवं (7) सभासद

चंन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु (chenndragupt morya ke mrityu)

चंन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया और यही चंन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईसा पूर्व में उपवास द्वारा हुईं।

चंन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिन्दुसार

चंन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी बिन्दुसार हुआ जो 298 ईसा पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा। बिन्दुसार का जन्म 320 ईसा पूर्व में हुआ।इनकी पत्नी सुभद्रांगी (रानी धर्मा) आशोक सम्राट इन्हें का पुत्र था। बिन्दुसार अपने पिता के समान ही इन्होंने राज्यों में भेद भाव जातिवाद स्त्री पुरुष मे भेदभाव आदि को समाप्त करने की कोशिश की है। 

बिन्दुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है। अमित्रघात का अर्थ है- शत्रु विनाशक । बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। वायुपुराण में बिन्दुसार को भद्रसार (या वारिसार) कहा गया है। जैन ग्रंथों में बिन्दुसार को सिंहसेन कहा गया है। 

स्ट्रैबो के अनुसार सीरियन नरेश एण्टियोकस ने बिन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा। इसे ही मैगास्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोह का वर्णन है। इस विद्रोह को दबाने के लिए बिन्दुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा। 

एथीनियस के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस-I से मदिरा, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की थी। बौद्ध विद्वान तारानाथ ने बिन्दुसार को 16 राज्यों का विजेता बताया है। 

बिन्दुसार की मृत्यु 269 ईसा पूर्व में हुआ ये अपने अपने पिता की तरह एक प्रभावी सम्राट नहीं बन पाए। लेकिन इन्होंने ने मगध राज्य का विस्तार किया। 

बिन्दुसार का उत्तराधिकारी आशोक महान

आशोक सम्राट का जन्म 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुआ। बिन्दुसार के मृत्यु के बाद आशोक 269 ईसा पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठने के समय आशोक अवन्ति का राज्यपाल था। मास्टर एवं गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है। पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है। 

कलिंग का युद्ध इतिहास का भयानक युद्ध रहा। kaling ka yuddh

अशोक महान के शासन के दौरान युद्ध की बात की जाए तो सबसे भयंकर कलिंग के युद्ध को माना जाता है। कलिंग पर विजय पाने का प्रयास चंन्द्रगुप्त मौर्य ने भी की परन्तु असफल रहे। चंन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार ने कलिंग राज्य को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास किया परन्तु ये भी असफल रहे। 

परन्तु अपने दादा और पिता से विपरीत अशोक ने अपने अभिषेक के 8वे वर्ष के लगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग राज्य पर आक्रमण किया। यह लड़ाई मौर्य सम्राट अशोक और राजा अनंत पद्मानाभन के बीच हुई। इस युद्ध में कलिंग का एक एक सैनिक अपने देश के आन के लिए मरने को तैयार था। इस युद्ध को महिलाओं ने भी लड़ा जिनकी सेनापति कलिंग की राजकुमारी थी। 

इस लड़ाई में सबसे अधिक खून खराबा हुआ। इस युद्ध में अशोक सम्राट को विजय मिला और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया उन्होंने इस युद्ध को जीत तो लिया मगर इस युद्ध के दिश्य के परिणाम को देखकर उनका ह्रदय कांप गया क्योंकि इस युद्ध में अपने सबसे अधिक वीर मौर्य सैनिकों की मृत्यु को देखा। उन्होंने भविष्य में युद्ध न करने का निर्णय लिया । 

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अशोक के प्रमुख शिलालेख व बौद्ध धर्म का प्रसार

कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने विश्व में बौद्ध धर्म के द्वारा शांति लाने प्रयास किया। उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया। अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक एवं अरमाइक लिपि प्रयोग हुआ है। 

ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से, खरोष्ठी लिपि का अभिलेख पश्चिम पाकिस्तान से और शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के अभिलेख मिले हैं। 

अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाॅंटा गया है (1) शिलालेख (2) स्तम्भलेख (3) गुहालेख। 

अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ईसवी में पाद्रेटी फेनथैलर ने की थी। इनकी संख्या 14 है। अशोक के अभिलेख पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ईसवी में जेम्स प्रिसेप को हुईं। 

अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय

शिलालेख संख्यावर्णित विषय
पहला शिलालेखइसमें पशुबलि निंदा की गयी है।
दूसरा शिलालेखइसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है।
तीसरा शिलालेखइसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पाॅंचवें वर्ष के उपरान्त दौरे पर जाऍं।इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है।
चौथा शिलालेखइस अभिलेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है।
पाॅंचवाॅं शिलालेखइस शिलालेख में धर्म महामात्र की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
छठा शिलालेखइसमें आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है।
सातवाँ एवं आठवाँ शिलालेखइसमें अशोक सम्राट की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख किया गया है।
नौवाँ शिलालेखइसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है।
दसवाँ शिलालेखइसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें।
ग्यारहवाँ शिलालेखइसमें धम्म की व्याख्या की गयी है।
बारहवाँ शिलालेखइसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है।
तेरहवाँ शिलालेखइसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के ह्रदय परिवर्तन की बात कही गयी है।इसी में पड़ोसी राजाओं का वर्णन है।
चौदहवाँ शिलालेखइसमें अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया है

 

अशोक के स्तम्भलेख की संख्या 7 है, जो केवल लिपि में लिखी गयी है। यह छह अलग अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है।

(1) प्रयाग स्तम्भ :- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था। इस स्तम्भ लेख को अकबर ने इलाहाबाद (प्रयागराज)  के किले में स्थापित कराया। 

(2) दिल्ली टोपरा :- यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया। 

 (3) दिल्ली- मेरठ:- पहले मेरठ में स्थित यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया है। 

(4) रामपुरवा :- यह स्तम्भ लेख चम्पारण (बिहार में स्थापित है। इसकी खोज 1872 ईसवी में कार्यालय ने की। 

(5) लौरिया अरेराज :- यह  स्तम्भ लेख भी चम्पारण (बिहार) में प्राप्त हुआ है। 

(6) लौरिया नन्दनगढ़ :- चम्पारण (बिहार) में इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है।

(7) अशोक का 7वाॅं अभिलेख सबसे लम्बा है। 

कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है। अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ लेख रुम्मिदेई है। इसी में लुम्बिनी में धम्म यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भू-राजस्व की दर घटा देने की घोषणा की गयी है। 

मौर्य साम्राज्य का आरंभिक दौर और उसका पतन
अशोक स्तम्भ का चित्र

 

अशोक का प्रशासनिक समिति एवं उनके कार्य

अशोक के समय मौर्य साम्राज्य (morya samrajya) में प्रांतों की संख्या 5 थी। प्रांतों को चक्र कहा जाता था। 

प्रशान्त की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका मुखिया ग्रामीक कहलाता है ये ग्राम से जुड़े कार्य देखते थे। प्रशासकों में सबसे छोटा गोप था जो दस ग्रामों का शासन सॅंभालता था। 

युद्ध क्षेत्र में सेना का नितृत्व करनेवाला अधिकारी नायक कहलाता था। सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति होता था। मेगास्थनीज के अनुसार मौर्य सेना का रख रखाव 5 सदस्यीय, 6 समितियाँ करती थी। 

मौर्य प्रशासन में गुप्तचर विभाग महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था। अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहा गया है। तथा एक ही स्थान पर रहकर कार्य करनेवाले गुप्तचर को संस्था कहा जाता था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करके कार्य करनेवाले गुप्तचर को संचार कहा जाता था। 

अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन

अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व लगभग हुआ। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य (morya samrajya) का पतन होना शुरू हो गया क्योंकि अशोक के बाद मौर्य वंश कोई भी शासक इतना योग्य नहीं था और कोई भी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, अशोक सम्राट, इन सभी जितना शासन नहीं कर पाए। 

मौर्य वंश का अंतिम  शासक 

नंद वंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहयता प्राप्त की थी। मौर्य शासन 137 वर्षो तक रहा। मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था। इसकी हत्या इनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नींव डाली। 

मौर्य शासकों की सूची

मौर्य शासकशासन काल
चंन्द्रगुप्त मौर्य 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व (24 वर्ष)
बिन्दुसार298 ईसा पूर्व से 271 ईसा पूर्व (28 वर्ष)
अशोक सम्राट269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व (37 वर्ष)
कुणाल232 ईसा पूर्व से 228 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
दशरथ228 ईसा पूर्व से 224 ईसा पूर्व (4 वर्ष)
सम्प्रति224 ईसा पूर्व से 215 ईसा पूर्व (9 वर्ष)
शालिसुक215 ईसा पूर्व से 202 ईसा पूर्व (13 वर्ष)
देववर्मन202 ईसा पूर्व से 195 ईसा पूर्व (7 वर्ष)
शतधन्वन्195 ईसा पूर्व से 187 ईसा पूर्व (8 वर्ष)
बृहद्रथ187 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)

इस जानकारी में मौर्य वंश के तीनों सम्राट ने मौर्य साम्राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में बनाये रखा लेकिन हमने समझा की अशोक के मृत्यु के बाद मौर्य वंश कमजोर होने लगा और इसका लाभ शत्रुओं ने उठाया तथा मौर्य वंश और साम्राज्य का अंत कर दिया 

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नमस्कार दोस्तों, मैं अमजद अली, Achiverce Information का Author हूँ. Education की बात करूँ तो मैंने Graduate B.A Program Delhi University से किया हूँ और तकनीकी शिक्षा की बात करे तो मैने Information Technology (I.T) Web development का भी ज्ञान लिया है मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है. इसलिए मैने इस Blog को दुसरो को तकनीक और शिक्षा से जुड़े जानकारी देने के लिए बनाया है मेरी आपसे विनती है की आप लोग इसी तरह हमारा सहयोग देते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे

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