sampreshan ka mahatva और उसके विभिन्न माॅडल
sampreshan ka mahatva आप का स्वागत है हमारे Achiverce Information में यहाँ पर हम परीक्षा से सम्बन्धित कई पोस्ट डालते है । तो आज का Topic है सम्प्रेषण के बारें में लिखा है।
आज के इस तेज़ी से बदलते समय में संप्रेषण या संचार की महत्वपूर्णता और भी अधिक बढ़ गई है। चाहे वह व्यक्तिगत जीवन हो या व्यावसायिक, प्रभावी संचार कौशल के बिना हमारा जीवन एक तरह से अधूरा है। संप्रेषण केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं है; यह विचारों, भावनाओं, और ज्ञान की एक जटिल प्रक्रिया है जो मानवीय संबंधों की नींव रखती है।
(1) सम्प्रेषण क्या है और उसका अर्थ।
सम्प्रेषण के लिए लिए अंग्रेजी भाषा ‘Communication’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के ‘Communis’ शब्द से हुई है
‘Communis’ शब्द का अर्थ है किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्ति में सामान्तया common बना देना इस प्रकार सम्प्रेषण या संचार से आशय है तथ्यो, सूचनाओं, विचारो आदि को भेजना या समझना। इस प्रकार सम्प्रेषण एक द्वमागी प्रकिया है जिसके लिए आवश्यक है कि यह सम्बंधित व्यक्ति तक उसी अर्थ में पहुंचे जिस अर्थ में सम्प्रेषणकर्ता ने अपने विचारों को भेजा है यदि सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश वाहक द्वारा भेज गये सन्देश को उस रुप में ग्रहण नहीं करता है तो सम्प्रेषण पूरा नही माना जाऐगा।
दूसरे शब्दों में कहे सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बिच मौखिक, लिखित साकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचारो एवं सूचनाओ के प्रेषण कि प्रक्रिया है। सम्प्रेषण हेतु संदेश का होना आवश्यक है। सम्प्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (संदेश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (संदेश प्राप्तकर्ता) होता है। सम्प्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब संदेश मिल जाता है और उसकी स्वकृति या प्रत्युत्तर दिया जाता है।
(2) sampreshan ka mahatva
(2.1) व्यवसाय को प्रोत्साहन:- सम्प्रेषण से कम समय में ज्यादा काम सम्भव हो गया है और घरेलु एवं विदेशी व्यपार में वृद्धि हुई है। व्यापारी घर बैठे ही सौदे कर सकते है, पूछताछ कर सकते है व स्वीकृति भेज सकते है। परिवार मित्रो से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखने सकते है। इसलिए काम धंधे के लिए लोग अब आसानी से दूर जाने लगे है।
(2.2) सामाजीकरण:- सम्प्रेषण के विभिन्न साधनों से लोग अपने संंगे सम्बं- धित मित्रो परिचितों से नियमित रूप से संदेशो का आदान प्रदान करते है। इससे आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए है और सामायीकरण बढ़ा है।
(2.3) कार्य निष्पादन में कुशलता:- प्रभावी सम्प्रेषण का कार्य निष्पादन में श्रेष्ठता लाने में बड़ा योगदान है व्यावसायिक इकाई में नियमित सम्प्रेषण के कारण दुसरो से ऐच्छिक सहयोग प्राप्त है क्योंकि वह विचार एवं निर्देशो भली भाति समझते है।
(2.4) पेशेवर लोगो के लिए सहायक:- वकील अलग अलग कोर्ट मे जाते है जो दूर दूर स्थित होती है।डाक्टर कई नांर्सिग होम मे जाते है और चार्टर्ड एकाउंटेंट कार्यालयो मे जाते है। मोबाइल टेलीफोन से उन्हे अपना कार्यक्रम निधारित करने में तथा उसमे आवश्यकता नुसार परिवर्तन करने में सहयता मिलती है।
(2.5) समुद्री तथा वायु यातायात:- संचार माध्यम समुद्री जहाज तथा हवाई जहाज की सुरक्षित यात्रा के लिए बहुत सहायक रहते है क्योकि इनका मार्ग दर्शन एवं स्थान विशेष पर स्थिति नियत्रंण कक्ष से प्राप्त सम्प्रेषण द्वारा किया जाता है।
(2.6) शिक्षा का प्रसार:- शिक्षा सम्बंधित अनेक कार्यक्रम रेडियो द्वारा प्रसारित किये जाते है और टेलीविजन पर दिखाए जाते है। यह प्रणाली व्यक्तिगत अध्ययन के स्थान पर विद्यार्थीयो को शिक्षा देने की एक अधिक लोकप्रिय प्रणाली बन चुकी है।
(2.7) विज्ञापन:-रेडियो तथा टेलीविजन जन साधारण से संवाद के साधन है तथा व्यावसायिक फर्मो के लिए विज्ञापन के महत्वपूर्ण माध्यम है क्योकि इनके द्वारा बड़ी संख्या में लोगो तक पहुचा जा सकता है।
(3) सम्प्रेषण को लेकर विशेषज्ञों के माॅडल।
विश्व के अनेक सम्प्रेषण विशेषज्ञो ने अपने अपने माॅडल दिए है जिनमे से कुछ विशेषज्ञो के माॅडल इस प्रकार है:-
(3.1) अरस्तू का माॅडल:- यह संचार का प्रारम्भिक, सरल तथा साधारण माॅडल है इसका प्रतिपादन अरस्तू ने किया है इसलिए इसे अरस्तू का माॅडल कहा जाता है इस माॅडल के अनुसार सम्प्रेषण प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन तत्व महत्वपूर्ण है।
(i) सम्प्रेषण- वह व्यक्ति जो सम्प्रेषण करता है।
(ii) संदेश- संदेश जो व्यक्ति के द्वारा उत्पादित किया जाता है।
(iii) श्रेया- व्यक्ति का समूह या व्यक्ति जो सुनते है।
(3.2) लास्वेल माॅडल:- लोस्वेल्ल का मौखिक माॅडल भी कहा जाता है इसे वर्ष 1948 में अमेरिकी वैज्ञानिक हेराल्ड लास्वेल ने प्रस्तुत किया है इस माॅडल के तत्व निम्न है।
वह बहुत स्पष्ट तथा सरल प्रतिमान है।
इस माॅडल मे कहने वाला संचारक है।
लक्षित समूह को प्रभावित करना इस माॅडल मे सम्प्रेषण का मुख्य उद्देश्य है।
(3.3) बलों गतिशील प्रक्रिया माॅडल:- इस माॅडल का प्रतिपादन डेविड बलों ने किया है। उनका विचार है की घटनाओ का एक निश्चित क्रम नही होता यह लगातार चलती रहती है और उनका विचार है की घटनाओ का एक निश्चित परिवर्तन होता रहता है यह स्थित नही होता है।
इस माॅडल के मुख्य तत्व निम्न है-
संचार श्रोत, संदेश, चैनल, संवाद वाचक, प्राप्तकर्ता, प्रतिक्रिया,
(3.4) थिल व बोवी का माॅडल:- थिल व बोवी माॅडल के अनुसार प्रक्रिया विचार से प्रारंभ होकर प्रतिक्रिया तक चलती रहती है जब किसी के मस्तिष्क में कोई विचार आता है तो यह पहले संदेश मे बदलता है। इसके बाद संदेश भेजा जाता है तथा संदेश प्राप्त करने वाला संदेश प्राप्त करके उसका विश्लेषण करता है इसके बाद वह उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
(3.5) डेस माॅडल:- इस माॅडल का प्रतिपादन डेस ने सन 1967 में किया था। इस माॅडल के अनुसार संचार प्रक्रिया एक चक्र के रूप में घुमती रहती है जिनका ना कोई प्रारम्भिक बिन्दु होता है और ना ही कोई अंतिम बिन्दु होता है।
(3.6) किलबर का माॅडल:- इस माॅडल के अनुसार जब तक संदेश का सही सही अर्थ नही निकलत जाता है तब तक संदेश प्रभावी नही हो सकता है संदेश तभी प्रभावी होता है। जब संदेश को भेजने वाला और प्राप्त करने वाले उसका एक ही अर्थ निकलते है ।
(4) सम्प्रेषण प्रक्रिया के मूल तत्व।
(4.1) सन्देश प्रेषक:- संचार प्रक्रिया में यह वह व्यक्ति होता है जो अपने विचार या सन्देश भेजने के लिए दुसरे व्यक्ति से सम्पर्क बनता है विचारो की अभिव्यक्ति लिखकर, बोलकर, कार्यवाही करके अथवा चित्र बनाकर की जाती है।
(4.2) विचार की स्रष्टि:- सम्प्रेषण का प्रारंभ किसी ऐसे विचार के पैदा होने से होता है जो सम्प्रेषित किया जाना है। संदेश पेषक को अपने विचार की पूरी जानकारी एवं स्पष्टता होनी चाइये अर्थात उसे साफ साफ समझ लेना चाइये की वाक्य कहना चाहता है।
(4.3) संदेश वचन :- सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता, संदेश प्राप्त होने के पश्चात उसकी व्याख्या करता है। वह शब्दों संदेशो, चित्रो आदि के द्वारा उसका अर्थ स्पष्ट करता है। अत: प्राप्त संदेश को अपनी समझ के अनुसार अर्थ देना इसके विचार को ग्रहण करना संदेश तथा यदि शक हो तो उसे दूर करना ही संदेश वचन कहलाता है। संदेश प्राप्तकर्ता भेजे गये संदेश को अनुवाद अथवा अर्थ लगाकर प्रेषक द्वारा भेजे गये अर्थ भाव को निस्चित में समझता है।
(4.4) संदेश प्राप्ति:- सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूर्ण होती है जब संदेश प्राप्तकर्ता द्वारा संदेश प्राप्त कर लिया जाता है प्रत्येक संदेश का केन्द्र बिंदु संदेश प्राप्त ही होना है अतः यह आवश्यक है की सम्प्रेषण संदेश प्राप्तकर्ता को घ्यान में रखकर ही किया जाये।
(4.5) प्रतिपुष्टि:- जब संदेश प्राप्त करने वाला संदेश के उत्तर में अपनी प्रतिक्रिया या भावना व्यक्त कर देता है तब उसे प्रतिपुष्टि कहा जाता है सम्प्रेषण का उद्देश्य पहुचना ही नही होता बल्कि संदेश के अनुसार कोई कार्यवाही करना अथवा हो रही कार्यवाही को रोकना होता है।
(5) संप्रेषण के प्रकार
संप्रेषण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है: मौखिक और अमौखिक। मौखिक संप्रेषण में शब्दों के माध्यम से विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान होता है, जबकि अमौखिक संप्रेषण में शारीरिक भाषा, इशारे, और मुखाकृति शामिल होते हैं। दोनों ही प्रकार के संप्रेषण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
(6) संप्रेषण में तकनीक की भूमिका
आधुनिक युग में, तकनीक ने संप्रेषण के तरीकों को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है। ईमेल, सोशल मीडिया, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और अन्य डिजिटल माध्यमों ने हमें दुनिया भर में किसी के साथ भी जुड़ने की क्षमता प्रदान की है। यह दूरस्थ काम, वैश्विक सहयोग, और ज्ञान के विस्तार में मददगार साबित हुआ है।
(7) संप्रेषण कौशल का विकास
संचार कौशल को विकसित करना एक निरंतर प्रक्रिया है। सुनने की कला, स्पष्ट और संक्षिप्त बोलने की क्षमता, और गैर-मौखिक संकेतों की समझ, सभी प्रभावी संप्रेषण के अभिन्न अंग हैं। आत्म-जागरूकता और निरंतर अभ्यास से हम अपने संचार कौशल को सुधार सकते हैं।
निष्कर्ष
sampreshan ka mahatva जीवन के हर क्षेत्र में महसूस किया जा सकता है। यह हमें एक-दूसरे से जोड़ता है, हमारे विचारों और भावनाओं को साझा करने की क्षमता प्रदान करता है, और हमें बेहतर समझने और समझाने में मदद करता है। संप्रेषण के माध्यम से, हम अधिक सहयोगी, समझदार, और सफल समाज की नींव रख सकते हैं। इसलिए, यह हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है कि हम अपने संचार कौशल को विकसित करें और उसे सुधारते रहें।
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