आपका स्वागत है हमारे Achiverce Information में तो इस पोस्ट में आपको बताने जा रहे सूफीमत का क्या अर्थ है।Sufism ka kya arth hai,सूफीवाद के सिध्दांत,Safism kai siddhat इस विषय पर हमने इस पोस्ट में जानकारी देने का प्रयास किया है।
सूफीमत का क्या अर्थ है। Sufism ka kya arth hai
सूफीमत का अर्थ मध्यकालीन भारत में कुछ मुसलमान संतों ने प्रेम और भक्ति को अपनाने का प्रयास किया। वे सूफी संत कहलाये। सूफी मत के सम्बन्ध में राय चौधरी ने लिखा है, “सूफीमत ईश्वर तथा जीवन की समस्याओं के प्रति मस्तिष्क और हृदय की भावना है और वह कट्टर इस्लाम से उसी प्रकार भिन्न है। जिस प्रकार कैथोलिक धर्म से ओवेकर्स से भिन्न है।”
सूफ़ी शब्द की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में मतभेद है। अधिकांश विद्वान उसकी उत्पत्ति ‘सफा’ शब्द से मानते हैं। इस सम्बन्ध में उनका कहना है कि वे व्यक्ति जो पवित्र थे ‘सूफी’ कहलाये। वस्तुतः सूफी विचार से प्रेमपूर्ण भक्ति का द्योतक है। इस सम्बन्ध में डॉ. ताराचन्द ने लिखा- “सूफीवाद प्रगाढ़ भक्ति का धर्म है, प्रेम इसका भाव है, कविता, संगीत तथा नृत्य इसकी आराधना के साधन हैं, तथा परमात्मा में विलीन हो जाना इसका आदर्श है। “
भारत में सूफी सम्प्रदाय का आगमन सम्भवतः आठवीं शताब्दी से पूर्व ही हो गया था। अनेक सूफी संतों ने दक्षिण तथा सिंघ में अपने मत का प्रचार किया था।
प्रारम्भिक सूफी अंतों में अबूल हसन हज हुज्विरी, बाबा फरीदुद्दीन (1225 ई.) और मेसूदराज (1375 ) आदि उल्लेखनीय हैं। आगे चलकर सूफी चार सम्प्रदायों चिश्तियों, सुहरावर्दियों, कादिरिया और नक्सबन्दियां हो गये थे।Sufism ka kya arth hai
सूफ़ीवाद के सिद्धांत।Safism kai siddhat
(i) सूफीमत के लोग एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। इनके अनुसार यह संसार उसी ईश्वर की प्रतिछाया है। संसार में प्रत्येक वस्तु ईश्वर की दी हुई है। सूफियों ने इसके रूप में कुछ परिवर्तन किया है। उनके अनुसार ईश्वर वास्तविक है और कुछ नहीं है। उसका रूप शाश्वत और सर्वत्र है।
(ii) ये लोग दैवी चमत्कार को भी मानते हैं। इसमें मनुष्य मानवीय स्थिति से ऊपर उठकर देवत्व को प्राप्त करता है। इस अवस्था में वह ईश्वर की शिक्षाओं को सुन सकता है और जनता के सामने उत्तम विचारों के रख सकता है।
(iii) सूफी धर्म के गुरु को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। इस धर्म में दीक्षित होने से पूर्व किसी भी व्यक्ति को गुरु के सामने कुछ प्रतिज्ञायें करनी पड़ती हैं। शिष्य को आश्रम में रहना, पानी भरना, सफाई करना आदि सभी कार्य करने पड़ते थे। कठिन मार्गों को पार करने के लिए गुरु का होना आवश्यक है। गुरु की सहायता से व्यक्ति अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है। जायसी ने इस सम्बन्ध में लिखा है
“बिन गुरु पंव न पाइये, भूले से भेंट।”
अच्छे गुरु के मिल जान से दुर्गम वस्तुएँ भी आसानी से मिल जाती हैं। सद्गुरु के मिल जाने पर शिष्य को तनिक भी भेदभाव नहीं रखना चाहिए।
(iv) सूफियों के अनुसार हृदय तक दर्पण के समान है। इसमें ईश्वर का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। शुद्ध हृदय से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
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(v) सूफियों के अनुसार परमात्मा ने विश्व की रचना की है। यह विश्व माया से पूर्ण नहीं है। ईश्वर ने संसार को दर्पण समझकर अपनी छाया को देखा है।
(vi) इस विचारधारा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अच्छे कर्म करने चाहिए। अच्छा
कर्म मनुष्य को ईश्वर के निकट ले जाता है। बुरे कर्म होने पर वह ईश्वर से दूर हो जाता है। ईश्वर की खोज करने वालों को मृत्यु से डरना चाहिए।
(vii) सूफीवाद मनुष्य को बहुत अधिक महत्व देता है। वह सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसकी आत्मा सार्वभौमिक है। उसकी आत्मा कामों से प्रभावित हो जाती है। उसकी अच्छी प्रवृत्ति उसे उत्तम मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।
(viii) सूफी धर्म में प्रेम को विशेष महत्व दिया गया है। सूफी मत का आधार ही प्रेम है। इसके अनुसार ईश्वर अद्वितीय सुंदर है तथा उसे प्रेम के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। किसी वस्तु के लगाव से जो सुख और लाभ प्राप्त होता है, वह प्रेम है। प्रेम शारीरिक, मानसिक और आत्मिक होता है।Safism kai siddhat
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(ix) इस धर्म के अनुयायियों के अनुसार कुरान के शाब्दिक और बाहरी ओर
विशेष ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि इसमें छिपे रहस्य को महत्व देना चाहिए। ईश्वर दयालु है। हमेशा उसकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
(x) ईश्वर के साथ एकत्व प्राप्त करना सूफियों का सबसे बड़ा उद्देश्य है। ईश्वर में पूर्ण विलीन (फना) होकर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
सूफ़ीवाद का प्रभाव
भारत में इस्लाम की विशाल भौगोलिक उपस्थिति को सूफी प्रचारकों की अथक गतिविधि द्वारा समझाया जा सकता है। सूफीवाद ने दक्षिण एशिया में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन पर एक व्यापक प्रभाव छोड़ा था।
इस्लाम के रहस्यमय रूप को सूफी संतों द्वारा पेश किया गया था। पूरे महाद्वीपीय एशिया से यात्रा करने वाले सूफी विद्वान भारत के सामाजिक, आर्थिक और दार्शनिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। प्रमुख शहरों और बौद्धिक विचारों के केंद्रों में प्रचार करने के अलावा, सूफ़ी गरीब और हाशिए के ग्रामीण समुदायों तक पहुंचे और स्थानीय बोलियों जैसे उर्दू, सिंधी, पंजाबी बनाम फारसी, तुर्की और अरबी में प्रचार किया।
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सूफीवाद एक “नैतिक और व्यापक सामाजिक-धार्मिक शक्ति” के रूप में उभरा, जिसने हिंदू धर्म जैसी अन्य धार्मिक परंपराओं को भी प्रभावित किया, भक्ति प्रथाओं और मामूली जीवन शैली की उनकी परंपराओं ने सभी लोगों को आकर्षित किया। मानवता, भगवान के प्रति प्रेम और पैगंबर की उनकी शिक्षाएं आज भी रहस्यमय कहानियों और लोक गीतों से घिरी रहती हैं।
सूफी धार्मिक और सांप्रदायिक संघर्ष से दूर रहने में दृढ़ थे और सभ्य समाज के शांतिपूर्ण तत्व होने का प्रयास करते थे। इसके अलावा, यह आवास, अनुकूलन, धर्मनिष्ठा और करिश्मा का दृष्टिकोण है जो सूफीवाद को भारत में रहस्यमय इस्लाम के स्तंभ के रूप में बने रहने में मदद करता है।
Conclusion
तो प्रिय पाठक अब आपको इस चीज का ज्ञान हो गया होगा की सुफीमत का क्या अर्थ है Sufism ka kya arth hai और उसके सुफीवाद के सिध्दांतों Safism kai siddhat के बारे में एवं उनके प्रभाव के बारे जानकारी मिली है। अगर आपको किसी प्रकार से इस लेख कोई गलती हो तो हमें अवश्य बताए ।
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